वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
दाग़ देहलवीअंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
मरने की दुआ मांगी जीने की सज़ा पाई
नुशूर वाहिदी
ढूंढ़ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें
अहमद फ़राज़
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दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
हफ़ीज़ बनारसी
वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया
हफ़ीज़ जालंधरी
जफ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यूँ सँभल के बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की
मजरूह सुल्तानपुरी
उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से
कभी गोया किसी में थी ही नहीं
दाग़ देहलवी
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा’दा न वफ़ा करते वा’दा तो किया होता
चराग़ हसन हसरत
जफ़ा से उन्हों ने दिया दिल पे दाग़
मुकम्मल वफ़ा की सनद हो गई
मुज़्तर ख़ैराबादी
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तेरी वफ़ा में मिली आरज़ू-ए-मौत मुझे
जो मौत मिल गई होती तो कोई बात भी थी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं
बहज़ाद लखनवी