चाईना में बनने वाली कोरोना वैक्सीन का इस्तेमाल मुस्लिम नहीं करेंगे- मुस्लिम संगठन
Coronavirus Vaccine : बुधवार को 9 मुस्लिम संघटनों (Muslim Organizations) ने एक मीटिंग में फैसला लिया है कि चीन (China) में बनने वाली कोरोना वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) का इस्तेमाल मुस्लिम नहीं करेंगे.
- News18Hindi
- Last Updated:
December 24, 2020, 7:10 AM IST
चाइन की वैक्सीन का इसलिए नहीं करेंगे इस्तेमाल
मुस्लिम संगठनों के महासचिव मो. सैय्यद नूरी ने बुधवार को मुंबई में कहा, ‘हमारे लोगों कि मीटिंग हुई है, जिसमें 9 संघटन शामिल हुए. हमें पता चला है कि चाईना में एक वैक्सीन बनाई है, जिसमें सुअर के बाल, चर्वी या उसके मांस का इस्तमाल हुआ है. मुसलमानों में सुअर पूरी तरह से हराम है. अगर सुअर का एक बाल भी कुएं में गिर जाता है तो पूरा कुआं ना-पाक हो जाता है. इसलिए यह तय हुया है कि चाईना वाली वैक्सीन का इस्तेमाल हम नही करेंगे.

मुस्लिम संघटनों को कहना है कि चाइना की वैक्सीन में सुअर का इस्तमाल हुआ है.
भारत में भी कई वैक्सीन का ट्रायल अंतिम चरण में
बता दें कि भारत में भी कई वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है. इधर बुधवार को एक बार फिर से हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक (Bharat Biotech) ने भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीजीसीआई) के साथ अपने कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सीन (Covavxine) के आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के लिए आवेदन किया है. यह वैक्सीन वर्तमान में 1,000 वॉलेंटियर्स के साथ चरण I और II परीक्षणों को पूरा करने के बाद भारत भर में 25 केंद्रों पर 26,000 वॉलंटियर्स पर तीसरे चरण के ह्यूमन ट्रायल्स कर रहा है.
कई कंपनियों ने डीसीजीआई से मांगी है अनुमति
इस बीच सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने अपने कोविड -19 वैक्सीन उम्मीदवार कोविशिल्ड की सुरक्षा और इम्युनोजेनसिटी के निर्धारण के लिए डीसीजीआई द्वारा मांगा गया अतिरिक्त डेटा प्रस्तुत किया है. भारत में दिसंबर अंत से पहले आपातकालीन उपयोग के लिए कोविड -19 वैक्सीन की स्वीकृति मिलने की संभावना है, क्योंकि केंद्रीय ड्रग्स मानक नियंत्रण संगठन के विशेषज्ञ पैनल सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और फाइजर के आपातकालीन उपयोग के लिए उनके आवेदन की समीक्षा कर सकता है.

ब्रिटेन की 90 वर्षीय दादी मार्गरेट को फाइजर का पहला टीका लगा. फोटो: AP
फाइजर वैक्सीन भी रेस में
अमेरिका की फाइजर वैक्सीन के लिए 4 दिसंबर को सबसे पहले आवेदन किया गया था, इसके बाद पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक थे, जिन्होंने 6 और 7 दिसंबर को आवेदन किया था. फाइजर ने हालांकि कमेटी के सामने प्रेजेंटेशन देने के लिए और समय देने का अनुरोध किया था.
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सामान्य तौर पर टीकों में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है. इसी वजह से टीकाकरण को लेकर मुस्लिमों की चिंता बढ़ गई है. मुस्लिमों संगठनों के नेताओं का मानना है कि इस्लामी कानून के तहत पोर्क से बने उत्पादों के प्रयोग को हराम माना जाता है तो उसका टीका कैसे जायज होगा. हालांकि, कई मुस्लिम संगठनों का मानना है कि अगर कोई और विकल्प नहीं है तो कोरोना वायरस टीकों को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है. पहली प्राथमिकता मनुष्य का जीवन बचाना है.