जयपुर. टिड्डियां हमेशा झुंड में तब्दील होने पर ज्यादा तबाही मचाती है. अगर इन्हें झुंड में तब्दील ही ना होने दिया जाए तो तबाही को टाला जा सकता है. इसे लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानि आईसीएआर जल्द ही टिड्डियों पर रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू करने की तैयारी में है. अखिल भारतीय स्तर के इस प्रोजेक्ट के तहत खास तौर से टिड्डियों को एकल से झुंड में तब्दील होने से रोकने पर शोध होगा. कीट विज्ञानी डॉ. अर्जुन सिंह बालोदा के मुताबिक, हॉपर 5 बार मॉल्टिंग कर वयस्क टिड्डी में तब्दील होता है. जब ये वयस्क होते हैं तो इनके पीछे के पैर टकराने से इनके ब्रेन में सीरोटिन हॉर्मोन स्रावित होता है. यही हॉर्मोन टिड्डियों को एकल से झुंड के रूप में तब्दील करने के लिए जिम्मेदार होता है. जब टिड्डियां झुंड में तब्दील हो जाती हैं तो बड़े पैमाने पर तबाही मचाने लगती है. अगर टिड्डियों को झुंड में तब्दील होने से रोका जा सके तो खतरे को काफी हद तक खत्म किया जा सकता है.
झुंड में कई गुना बढ़ जाता है टेरर
तबाही के इस फर्क को ग्रास हॉपर और लॉकस्ट से समझा जा सकता है. दोनों एक ही प्रजाति के हैं. लेकिन चूंकि ग्रास हॉपर झुंड की बजाय एकल रूप से रहता लिहाजा फसल में बड़ी बर्बादी नहीं करता वहीं लॉकस्ट यानी टिड्डी झुंड में तब्दील हो जाती है और फसल को चट कर जाती है. एक किलोमीटर लम्बा और एक किलोमीटर चौड़ा टिड्डियों का झुंड हर रोज करीब 35 हजार व्यक्तियों के खाने के बराबर फसल चट कर जाता है. कीट विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. अर्जुन सिंह बालोदा के मुताबिक, टिड्डियों का प्रकोप विकसित देशों में कम और विकासशील देशों में ज्यादा है. यही वजह है कि अब तक इन पर ज्यादा रिसर्च नहीं हुआ है.
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5 साल का होगा प्रोजेक्ट
आईसीएआर 5 साल का ऑल इंडिया नेशनल प्रोजेक्ट शुरू करने की तैयारी कर रहा है जो साल 2021 से 2016 तक चलेगा. राजस्थान और गुजरात के साथ ही टिड्डी प्रभावित अन्य राज्यों में इस प्रोजेक्ट के तहत काम होगा और सेंटर्स खोले जाएंगे. प्रोजेक्ट के तहत टिड्डियों और हॉपर्स के स्वभाव को लेकर भी रिसर्च होगा. अब कृषि वैज्ञानिक यह समझेंगे कि हॉर्मोन किस तरह से काम कर टिड्डियों को झुंड में तब्दील होने में मदद करता है और इसे कैसे निष्प्रभावी किया जा सकता है ताकि इन्हें झुंड में तब्दील होने से रोका जा सके. अगर ऐसा हुआ तो उड़ते आतंक के खतरे को काफी कम किया जा सकेगा.