1.वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े-मज़े की हिकायतेंवो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का
वो निबाहने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो
हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे पेश्तर, वो करम के था मेरे हाल पर
मुझे सब है याद ज़रा-ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी बैठे सब में जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो के न याद हो
किया बात मैं ने वो कोठे की, मेरे दिल से साफ़ उतर गई
तो कहा के जाने मेरी बाला, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का
वो नहीं-नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो के न याद हो
जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ “मोमिन”-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो.
2. ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें कि हो गये नाचार जी से हम
हँसते जो देखते हैं किसी को किसी से हम
मुँह देख-देख रोते हैं किस बेकसी से हम
उस कू में जा मरेंगे मदद ऐ हुजूमे-शौक़
आज और ज़ोर करते हैं बेताक़ती से हम
साहब ने इस ग़ुलाम को आज़ाद कर दिया
लो बन्दगी कि छूट गए बन्दगी से हम
बे-रोये मिस्ले-अब्र न निकला ग़ुबारे-दिल
कहते थे उनको बर्क़े-तबस्सुम हँसी से हम
मुँह देखने से पहले भी किस दिन वह साफ़ थे
बे-वजह क्यों ग़ुबार रखें आरसी से हम
है छेड़ इख़्तलात भी ग़ैरों के सामने
हँसने के बदले रोयें न क्यों गुदगुदी से हम
क्या दिल को ले गया कोई बेग़ाना-अश्ना
क्यों अपने जी को लगते हैं कुछ अजनबी से हम
इन नातवानियों पे भी थे ख़ारे-राहे-ग़ैर
क्योंकर निकाले जाते न उसकी गली से हम.